बेशक भारत प्रथाओं और परम्पराओं का देश है। यहां अलग-अलग धर्म और जगहों पर अनेक प्रथाएं प्रचलित हैं। लेकिन क्या आपने किसी ऐसी प्रथा के बारे में सुना है, जिसमें लड़कियों और औरतों की खरीद फरोख्त होती हो। वह भी 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर।
भारत के इस राज्य में हर साल 300 लड़कियों को 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर बेचा जाता है।
मध्यप्रदेश अपने आप में कहने को एक बड़ा राज्य हैं लेकिन इसी राज्य में शिवपुरी नामक एक जगह है। यह अपने नाम के लिए नही बल्की यहां पर धड़ीचा प्रथा के कारण सुर्खियों में रहता है। यहां पर एक मंडी लगती है जहां पर लड़कियों को खड़ा किया जाता है और इसे प्रथा के नाम दिया जाता है। फिर यहां पर पुरुष आतें हैं और अपनी पसंद की लड़की का कीमत तय करते हैं और जब सौदा पक्का हो जाता है तब 10 रूपये से लेकर 100 तक स्टाम्प पेपर पर खरीद फरोख्त कर लेते हैं।
फिर उसका कोंट्राक्ट तैयार किया जाता है जिसमें खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदा करनी पड़ती है। एक मोटी रकम देने के बाद दोनों पति-पत्नी बन जातें हैं लेकिन रकम के आधार पर रिश्ते स्थाई होतें नही तो उसे खत्म कर दिया जाता है। इस मामले पर कई बार आवाज उठाया गया लेकिन अब तक किसी महिला ने सामने से अपनी शिकायत दर्ज नही कराई है। शायद यही कारण है की आज भी यह कुप्रथा बड़ी आसानी से चल रहा है।
भारत के इस राज्य में हर साल 300 लड़कियों को 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर बेचा जाता है।
मध्यप्रदेश अपने आप में कहने को एक बड़ा राज्य हैं लेकिन इसी राज्य में शिवपुरी नामक एक जगह है। यह अपने नाम के लिए नही बल्की यहां पर धड़ीचा प्रथा के कारण सुर्खियों में रहता है। यहां पर एक मंडी लगती है जहां पर लड़कियों को खड़ा किया जाता है और इसे प्रथा के नाम दिया जाता है। फिर यहां पर पुरुष आतें हैं और अपनी पसंद की लड़की का कीमत तय करते हैं और जब सौदा पक्का हो जाता है तब 10 रूपये से लेकर 100 तक स्टाम्प पेपर पर खरीद फरोख्त कर लेते हैं।
फिर उसका कोंट्राक्ट तैयार किया जाता है जिसमें खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम अदा करनी पड़ती है। एक मोटी रकम देने के बाद दोनों पति-पत्नी बन जातें हैं लेकिन रकम के आधार पर रिश्ते स्थाई होतें नही तो उसे खत्म कर दिया जाता है। इस मामले पर कई बार आवाज उठाया गया लेकिन अब तक किसी महिला ने सामने से अपनी शिकायत दर्ज नही कराई है। शायद यही कारण है की आज भी यह कुप्रथा बड़ी आसानी से चल रहा है।
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